Tuesday, December 22, 2009

मेरी नादानी

मेरी पहली कविता जो मैने १९९६ मे लिखा था .....


भूली मोहबत की दास्तान हो तुम ,
जहा सूरज चाँद सितारे ना हो ,
वो बदला हुआ आसमान हो तुम ,
भूली मोहबत की दास्तान हो तुम ,


सुना है बूंद बूंद से तालाब भरता है ,
मै भी दो चार बूंद अश्को से ,
अश्को का तालाब भर रहा हू ,
क्या जल्द ही ऐसा होगा ,
ये तालाब लबालब भरेगा ,
जिसे देख तेरा भी ,पत्थर दिल पिघलेगा ,
पर शायद .................
क्योकि जिसका कोई भविष्य नहीं ,
वो हशीन अरमान हो तुम ,
जहा सूरज चाँद सितारे ना हो,
वो बदला हुआ आसमान हो तुम ,


कब ख़त्म होगा यह अँधेरा ,
और आयेगा एक सुनहला सबेरा ,
ताकि मैं भी ख्वाब से जगकर ,
हकीक़त की दुनिया मे कदम रखू ,
शतरंज की विसात की तरह उलझे ,
इस दुनिया को समझ सकू ,
पर "बागी" की आत्मा धिक्कारती है ,
कि तुम नहीं समझोगे शायद ........
क्योकि अनाड़ी,नासमझ, पागल इंसान हो तुम ,
जहा सूरज चाँद सितारे ना हो,
वो बदला हुआ आसमान हो तुम ,
भूली मोहबत की दास्तान हो तुम .

5 comments:

  1. bahut badhiya ganesh jee,,,,ekdam dil ke chue wala kavita baa.....aur sahi kahi ta humra dil ke choo bhi lelas rauar kavita......raur koti koti dhanyabaad......preetam tiwary

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  2. Bahut badiya ganesh bhaiya.....so nice

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  3. Gazab likh dele baani Ganesh Bhai.. Poora bawaal.. Gazab.. Aisahi likhat rahin..

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  4. सम्मानीय गणेश जी सादर वन्दे..!
    आखर कलश पर छपी मेरी रचनओं पर आप द्वारा की गई टिप्पणी के लिए आभार
    आप मेरी रचनाएँ अपनी साईट पर छपना चाहते हैं ..आप बिलकुल छाप सकतें हैं मुझे खुशी होगी ..!
    आपका सम्पर्क सूत्र न होने की वजह से आपके ब्लॉग पर सन्देश छोड़ रही हूं ..!
    उत्तर विलम्ब से देने के लिए क्षमा चाहूंगी ..क्योंकि मै बाहर थी आपनी रचनाएँ व सबके कमेंट्स आज ही पढ़ें हैं ...आभार..!

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  5. एक सच... जिसे मैं बस पढता गया |
    सुन्दर अभिव्यक्ति | बेहद खुबसूरत |
    वो कहते हैं Its HOT...
    मैं कहता हूँ Its Hari Om Tasat
    पढ़ें
    देश के हालात: मिसिर पुराण में
    http://humbhojpuriya.blogspot.com/2010/05/blog-post.html

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