तुम गोली चलाते आ जाओ, हम तो गले लगाने बैठे है,
तुम रक्त पात करते रहो, हम अपनी लहू बहाने बैठे है,
तुम हिंसा को ही धरम मानते,हम अहिंसा के मतवाले है,
तुम दोनों गालो पर मारते रहो,हम तो गाँधी को मानने वाले है,
हर बार पीठ पर तुमने वार किया, फिर भी हम सीना ताने बैठे है,
तुम गोली चलाते आ जाओ, हम तो गले लगाने बैठे है,
तुम पडोसी धरम निभा न सके, हम भाई धरम निभाते है,
तुम फ़ौरन हमला कर देते, जब हम वार्ता के लिये बुलाते है,
तुम नफरत की आग उगलते हो,हम ताज सजाये बैठे है,
तुम गोली चलाते आ जाओ, हम तो गले लगाने बैठे है,
हम पकडे गये दुश्मनों को भी,जहाँ कहा वहां पहुचा दिया,
अफजल,कसाब को भी रखे है, तुमने ही अबतक कुछ नहीं किया,
इक विमान अपहरण कर,ले जाओ, हम आस लगाये बैठे है,
तुम गोली चलाते आ जाओ, हम तो गले लगाने बैठे है,
हम भारत के कर्णधार, हम निति निर्धारण करते है,
हमारा नहीं कुछ बिगडने वाला,इसलिये नहीं किसी से डरते है,
हर बार मुर्ख बनते भारत के भोले लोग,इस बार भी बनने को बैठे है,
तुम गोली चलाते आ जाओ, हम तो गले लगाने बैठे है,
तुम रक्त पात करते रहो, हम अपनी लहू बहाने बैठे है,
Wednesday, May 19, 2010
Tuesday, December 22, 2009
मेरी नादानी
मेरी पहली कविता जो मैने १९९६ मे लिखा था .....
भूली मोहबत की दास्तान हो तुम ,
जहा सूरज चाँद सितारे ना हो ,
वो बदला हुआ आसमान हो तुम ,
भूली मोहबत की दास्तान हो तुम ,
सुना है बूंद बूंद से तालाब भरता है ,
मै भी दो चार बूंद अश्को से ,
अश्को का तालाब भर रहा हू ,
क्या जल्द ही ऐसा होगा ,
ये तालाब लबालब भरेगा ,
जिसे देख तेरा भी ,पत्थर दिल पिघलेगा ,
पर शायद .................
क्योकि जिसका कोई भविष्य नहीं ,
वो हशीन अरमान हो तुम ,
जहा सूरज चाँद सितारे ना हो,
वो बदला हुआ आसमान हो तुम ,
कब ख़त्म होगा यह अँधेरा ,
और आयेगा एक सुनहला सबेरा ,
ताकि मैं भी ख्वाब से जगकर ,
हकीक़त की दुनिया मे कदम रखू ,
शतरंज की विसात की तरह उलझे ,
इस दुनिया को समझ सकू ,
पर "बागी" की आत्मा धिक्कारती है ,
कि तुम नहीं समझोगे शायद ........
क्योकि अनाड़ी,नासमझ, पागल इंसान हो तुम ,
जहा सूरज चाँद सितारे ना हो,
वो बदला हुआ आसमान हो तुम ,
वो बदला हुआ आसमान हो तुम ,
भूली मोहबत की दास्तान हो तुम .
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